Friday, August 21, 2009

जसवंत को हटाना एक बड़ी भूल

  • हृदेश अग्रवाल

भाजपा आज एक ऐसी पार्टी बन गई हैं जहां पर पार्टी के कुछ बड़े व चुनिंदा नेता ही अपनी बात कह सकते हैं या अपने द्वारा लिखी किताब या भाषण में अपने मन की बात कह सकते हैं और उन पर कोई भी ऊंगली नहीं उठाता क्योंकि उसे विचारधार के अंर्तगत मान लिया जाता है, बल्कि यह कहा जाता है कि इन्होंने तो पार्टी के लिए अपना घर-परिवार तक छोड़ देश की सेवा में अपना सब कुछ लगा दिया। वहीं अगर कोई पार्टी के दूसरे नेता, सांसद, मंत्री, विधायक या कोई छोटा नेता किसी के बारे में कोई तारीफ या कुछ कहता है तो अनुशासन की पींगें पडऩे लगती है, और उसको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देती है और कहती है कि हमारी पार्टी अनुशासन की राह पर चलने वाली पार्टी है यहां पर अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अनुशासन के खिलाफ अगर कोई भी जाएगा तो उसे पार्टी को छोडऩा पड़ेगा। वहीं भाजपा पार्टी के गत लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदार व पूर्व उपप्रधानमंत्री और पार्टी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी जिन्ना की सरजमीं पाकिस्तान में जाकर जिन्ना की कब्र पर फूल चढ़ाकर और जिन्ना की तारीफ के कसीबे पड़ रहे थे तब किसी ने भी आडवाणी पर अनुशासनहीनता का आरोप नहीं लगाया और न ही उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया बल्कि आडवाणी के बचाव में पूरी भाजपा ने आग में अपनी ताकत झोंक दी थी और कहा था कि आडवाणी ने कुछ गलत नहीं कहा, लेकिन आज भाजपा अपना यह कथन क्यों भूल गई है कि अगर आडवाणी गलत नहीं हो सकते तो जसवंत सिंह क्यों गलत हैं? जसवंत सिंह ने भी वही किया जो आडवाणी करके आए थे फक्र सिर्फ इतना है कि आडवाणी तो पाकिस्तान में जिन्ना की तारीफ करके आए थे और जसवंत सिंह ने अपने विचारों को किताबों में उतार कर देश को बताया, लेकिन सच तो लगता है कि जसवंत सिंह के जिन्ना प्रेम को देखते हुए भाजपा बौखला गई है उसे लगता है कि कहीं जसवंत सिंह अगले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदारी न घोषित कर दें और बेचारे आडवाणी को फिर से सिर्फ उपप्रधानमंत्री या गृह मंत्री पद से ही काम चलाना पड़े इसलिए उन्होंने जसवंत सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया, लेकिन भाजपा यह भूल गई कि जसवंत सिंह के क्षेत्र में जसवंत के खिलाफ चुनाव लडऩा आसाना नहीं होगा उसको लोहे के चने चबाना पड़ेंगे।